Friday, May 15, 2009

समासचक्रम भाग १

हरिः ॐ !!
समासचक्रम भाग १
शब्दाशब्दानिशी | गीतेचा अभ्यास | करीता प्रकर्षे | जाणवते || १ ||
संस्कृत भाषेच्या | गद्यात पद्यात | समास असती | रेलचेल || २ ||
मेघदूतामध्ये | पूर्ण चरणचि | एकाच शब्दाचा | सामासिक || ३ ||
यक्षाने मेघास | अलकानगरी | वर्णीयेली ऐसी | एके शब्दी || ४ ||
बाह्यो-द्यानस्थित-हरशिरश-चंद्रिका-धौत-हर्म्या 
चरणाचा अर्थ | समजण्यासाठी | मालिकाच पहा | समासान्ची || ५ ||
पहीला समास | आहे बाह्योद्यान | नगरीबाहेर | उद्यान जे || ६ ||
बाह्योद्यानस्थित | म्हंजे त्या बागेत | शम्भूची प्रतिमा | दिसेल की || ७ ||
शिवाचे शिरीच्या | चंद्रिकेचे तेज | उजाळते वाडे | नगरीचे || ८ ||
तीच ती नगरी | जाण तू अलका | तिथेच तुजला | जयाचे गा || ९ ||
ऐशा सामासिक | रचना जणू ह्या | भाषेचे सुन्दर | अलंकार  || १० ||
'समासचक्रम'शा | नावाची लहान | पोथी आहे माझ्या | बासनात || ११ ||
पोथीत दिलेत | सोदाहरण की | समास सार्याच | प्रकारांचे || १२ ||
म्हणती समास | नित्य वा अनित्य | अलुक किंवा लुक | ऐसे सुद्धा || १३ ||
परम्भाव शब्द | अनित्य समास | पदे जरी सुट्टी | अर्थ तोच || १४ ||
पदे वेगळाली | लिहीता निरर्थ | समास ते नित्य | जोडावेच || १५ ||
पदाची विभक्ती | ठेऊन का केला | सामासिक शब्द | अलुक तो || १६ ||
आत्मनेपद ह्या | समासी आत्मने | शब्दाची विभक्ती | राखलेली || १७ ||
किंवा सरसिज | शब्दातही पहा | सरसि हे रूप | विभक्तीचे || १८ ||
परन्तु सरोज | शब्दामधे पहा | पदांचा केवळ | संधी आहे || १९ ||
सरोज समास | लुक ह्या गटाचा | म्हणावा अलुक | सरसिज || २० ||
समास ते मुख्य | सहा प्रकारांचे | तत्पुरुष आणि | बहुव्रीही || २१ ||
द्विगु द्वंद्व आणि | कर्मधारय ही | अव्ययीभाव हा | सहाव्वा की || २२ ||
आठ प्रकारांचा | तत्पुरुष पहा | कर्मधारयाच्या | सहा रीती || २३ ||
बहुव्रीही सुद्धा | सात प्रकारांचे | द्विगूच्या जाणाव्या | दोन रीती || २४ ||
अव्ययीभाव ही | दोन प्रकारचे | द्वंद्वाचे प्रकार | दोन पहा || २५ ||
एणे रीती होती | अठ्ठावीस पहा | एकूण प्रकार | समासांचे || २६ ||
विभक्तीनुसार | तत्पुरुष सात | नय तत्पुरुष | आठवा हा || २७ ||
तसे तर द्विगु | कर्मधारय ही | तत्पुरुषाचेच | प्रकार की || २८ ||   
समासात मुख्य | पदे दोन होत | पूर्वपद आणि | उत्तर-पद || २९ ||
पूर्व-पद जरी | प्रधान दिसते | अव्ययीभावसा | समास तो || ३० ||
उत्तर-पद ते | प्रधान दिसते | समास जाणावा | तत्पुरुष || ३१ ||
दोन्ही पदे जरी | प्रधान दिसती | समासा त्या नाव | द्वंद्व ऐसे || ३२ ||
नव्हे पूर्व-पद | उत्तर-पद वा | निर्देश दिसतो | अन्यत्रचि || ३३ ||
ऐशा समासाचे | नांव बहुव्रीही | विग्रह करता | समजतो || ३४ ||
बाहुल्य असते | 'च'काराचे ज्यात | समास तो द्वंद्व | समजावा || ३५ ||
तो हा ते हे ऐसे | कर्मधारय की | ज्याचे ज्यासी जैसे | बहुव्रीही || ३६ ||
बाकीचे विग्रह | तत्पुरुषाचे ते | समास विग्रहे | स्पष्ट होतो || ३७ ||
बाह्य जें उद्यान | बाह्योद्यान तेंच | कर्मधारय हा | समास की || ३८ ||
बाह्योद्यानी स्थित | बाह्योद्यान-स्थित | सप्तमी विभक्ती | तत्पुरुष || ३९ ||
बाह्योद्यानस्थित | ऐसा हर येणे | कर्मधारयची | आणीक हा || ४० ||
हराचे त्या शिर | हरशिर ऐसा | षष्ठी तत्पुरुष | समास हा || ४१ ||
शिरीची चंद्रिका | शिरशचंद्रिका हा | सप्तामीचा हाही | तत्पुरुष || ४२ ||
चंद्रिकेने धौत | चंद्रिका-धौत हा | तृतीया विभक्ति | तत्पुरुष || ४३ ||
चंद्रिका-धौत से | हर्म्य म्हंजे वाडे | जिये नगरीचे | बहुव्रीही || ४४ ||

सार्या प्रकारचे | समास आहेत | समासचक्रात | विवरले || ४५ ||     
दुसर्या भागात | करू सवडीने | ऐसेच त्यांचेही | विश्लेषण || ४६ ||

इति अलं ||

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